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ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
सब को दिल के दाग़ दिखाए एक तुझी को दिखा न सके
तेरा दामन दूर नहीं था हाथ हमीं फैला न सके
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
ऐ दिल वालो घर से निकलो देता दावत-ए-आम है चाँद
शहरों शहरों क़रियों क़रियों वहशत का पैग़ाम है चाँद
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
दिल सी चीज़ के गाहक होंगे दो या एक हज़ार के बीच
'इंशा' जी क्या माल लिए बैठे हो तुम बाज़ार के बीच
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
देख हमारी दीद के कारन कैसा क़ाबिल-ए-दीद हुआ
एक सितारा बैठे बैठे ताबिश में ख़ुर्शीद हुआ
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
रात के ख़्वाब सुनाएँ किस को रात के ख़्वाब सुहाने थे
धुँदले धुँदले चेहरे थे पर सब जाने-पहचाने थे
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
वतन को छोड़ कर जिस सर-ए-ज़मीं को मैं ने इज़्ज़त दी
वही अब ख़ून की प्यासी हुई है कर्बला हो कर
यगाना चंगेज़ी
ग़ज़ल
जाने तू क्या ढूँढ रहा है बस्ती में वीराने में
लैला तो ऐ क़ैस मिलेगी दिल के दौलत-ख़ाने में